कोरोना का संकट सारी दुनिया को घेरे हुए है... हर देश, समाज, जमात और इंसान इस से अपने अपने तरीके से निपट रहा है... वास्तव में कोई इस संकट से सही मायनों में लड़ रहा है तो वो हैं हमारे डॉक्टर्स, सुरक्षाकर्मी (पुलिस), सफाई-कर्मी और रोज़मर्रा की ज़रूरतें आपको, हमको, सबको मुहैय्या कराने वाले हमारे फ़रिश्ते...
इन सब के अलावा तो सब अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं... सबके अपने अपने दुःख हैं और उन से भी बढ़ कर अपने अपने दुखड़े... आज, 17 दिन के लॉक-डाउन के बाद, भारत का हर टीवी चैनल एक मेडिकल-साइंस चैनल है और पुराने, प्रतिष्ठित चैनल्स जैसे डिस्कवरी, नॅशनल जियोग्राफिक या बीबीसी अर्थ से काफी आगे निकल गया है. हमारे टीवी ऐंकर्स कोरोना के इतने बड़े विशेषज्ञ बन कर उभरे हैं जैसे हम सदियों से इस बीमारी से निपट रहे हैं... साथ ही, हमेशा की तरह, हर बिल्डिंग या सोसायटी में कम से कम एक बुज़ुर्ग टाइप के अंकल ज़रूर मिल जाएंगे जिन्होंने कोरोना को अपने सामने पैदा होते, खेलते और बड़े होते हुए देखा है और वो इस से अच्छी तरह से निपटना जानते हैं. उनके पास कोरोना के हर लक्षण के लिए कोई न कोई घरेलू नुस्खा होता है और उन्होंने अपनी जवानी से ले कर अब तक कई लोगों को इसी तरह के 'कोरोनामय' लक्षणों के लिए ठीक भी किया होता है... शुरूआती घबराहट के बाद अब लोगों ने धीरे धीरे कोरोना की विचलित कर देने वाली खबरों और लॉक-डाउन की बड़ी सच्चाई के साथ जीना सीख लिया है या कम से कम जीना सीखना शुरू तो कर ही दिया है.
इसी कड़ी में हमारे ध्यान-खेंचू (Attention-Seeking), स्वघोषित सेलेब्रिटीज़ ने सोशल-मीडिया का शोषण ज़ोर-शोर से शुरू कर दिया है. कोई झाड़ू लगा रहा है, कोई बर्तन धो रहा है, कोई खाना पका रहा है और हम सब 'फैंस' से उम्मीद लगा के बैठा है कि हम झट से उनकी Posts को Like या retweet करेंगे और उसके नीचे बड़े बड़े 'Wow' या 💖 के इमोजी से प्रतिक्रिया देंगे...इसके अलावा एक बहुत बड़ा तबका रोज़ाना अपने व्यायाम करते हुए वीडियो डालता है... आप एक बार तो सोचने को मजबूर ही हो जाते हैं की ये एक फिल्म या टीवी के कलाकार हैं या कोई Gym-Instructor? कई सेलेब्रिटीज़ अचानक से हम सब को योग सिखाने लगे हैं और शुरुआत ही सीधे, कठिनतम, बकासन से कर रहे हैं... कुछ का कहना है कि वो अपनी बिल्डिंग की छत पर ही जॉगिंग या ब्रिस्क-वॉक कर रहे हैं... ये सब देख सुन कर कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है जैसे सिर्फ हम ही निठल्ले हैं और गुपचुप तरीके से इस लॉक-डाउन का मज़ा उठा रहे हैं, सिर्फ टीवी या इंटरनेट पर ही समय व्यतीत कर रहे हैं.... चूँकि प्रधानमंत्री जी ने कह भी दिया है कि घर पर बैठना ही आज के समय में सच्ची देश सेवा है, हम खुद को और घर वालों को तसल्ली देते नहीं थक रहे कि 'देश सेवा चल रही है....ये आलस नहीं है'.
.. तमाम सोशल-मीडिया पर बिखरे पड़े वीडियो और चित्रों को देखने और सुनने के बाद, अपराध बोध से ग्रस्त, मैंने भी अपने लिए 'उचित' गृह-कार्य ढूंढना शुरू किया...बर्तन मांजने, झाड़ू-पोंछा करने, पंखों की सफाई, घर के पर्दे बदलने इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक पर मैं लक्ष्य साधने को ही था कि पार्श्व में आवाज़ गूंजी..."चावल में तिलूले पड़ रहे हैं... इनको ज़रा धूप दिखाओ... ये कोरोना के चक्कर में सामान ला ला कर भर लिया है, अब कीड़े पड़ रहे हैं... कब तक संभाल के रखेंगे..." जो नहीं जानते, 'तिलूले' लम्बे समय तक बिना उपयोग किये गए चावल या अन्य अनाजों में पैदा हुए सबसे सामान्य कीड़े हैं जो 'बीटल' परिवार के कीट हैं मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिकारक नहीं हैं. इनका अंग्रेजी नाम Weevil है... और जिनका आपके अनाज में होना इस बात का द्योतक है कि आपके अनाज में किसी हानिकारक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है और गला फ़ाड़-फ़ाड़ के 'ऑर्गेनिक' चिल्लाने वाले आपके सुपरमार्केट ने आपको वास्तव में 'ऑर्गेनिक' उत्पाद दिया है (ये ज्ञान, गूगल पर उपलब्ध स्रोतों से प्रतुत है).
बहरहाल, लॉक-डाउन के चक्कर में दाल-चावल ज़्यादा ही स्टॉक कर लिया है. वैसे लॉक-डाउन की आड़ में ये बार-बार किराना ना लेने जाने की छोटी-मोटी कोशिश भी थी...घर में स्टॉक ज़्यादा पड़ा है और ये सोशल-मीडिआ वाले सेलेब्रिटीज़ खाने पर रोक लगाने पर तुले हुए हैं... अगर आप नियमित दिनचर्या का पालन नहीं कर रहे, तो सुबह-शाम नाश्ते में कटौती कीजिये...दिन के खाने में और रात के डिनर में एक-एक रोटी कम कर दीजिये... अगर व्यायाम नहीं कर कर रहे हैं तो चावल खाने पर कुछ दिन रोक लगाइये... अनाज का सेवन कम कीजिये, हरी सब्ज़ियां और फल ज़्यादा खाइये...अरे हुज़ूर, जो स्टॉक में है वो खाने नहीं दे रहे, जो खाने का सुझाव दे रहे हो वो न तो अब (17 -18 दिन बाद) स्टॉक में बचा है और (लॉक-डाउन के चलते) ना बाहर जाने दे रहे हो... ख़ैर, पार्श्व की वो आवाज़ अब आदेश में बदल चुकी थी..."धूप चली जाएगी...तब रखोगे क्या चावल धूप में?...प्रधानमंत्री जी ने घर में रहने को कहा है, ये नहीं कहा कोई काम नहीं करोगे!"
बे मन से उठते हुए मैंने चावल का डब्बा एक हाथ में उठाया और दूसरे में घर में उपलब्ध सबसे बड़ा थाल...और चल पड़ा धूप में तिलूलों का विनाश करने... बहुत दिनों बाद कोई काम हाथ में लिया था, लग रहा था हाथ में तलवार और ढाल है और आज दुनिया ही बदल दूंगा... घर की लगभग आधी बालकनी में अभी भी धूप बची थी पर वो भी निरंतर पीछे सरकती जा रही थी... मैंने डब्बे के चावल उड़ेले और धूप को पकड़ने की कोशिश करते हुए, थाल बची हुई तेज़ धूप में रख दिया...चूँकि आजकल समय की कोई कमी नहीं है, मैं वहीँ छाया में ये प्रयोग देखने बैठ गया की धूप में ये तिलूले चावल को कैसे छोड़ भागते हैं? 4-5 मिनिट में ही सफ़ेद-सफ़ेद चावल में ज़ीरे सामान एक्के-दुक्के तिलूले नज़र आने लगे...धूप में उनकी बेचैनी नज़र आ रही थी...मैं बैठा-बैठा उनकी अगली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगा...कुछ अति-उत्साहित, और संभवतः नयी-नयी बाइक खरीदे हुए, तिलूले सबसे पहले सरपट भागते हुए थाल की किनार पर इकट्ठा होने लगे...मेरी जिज्ञासा निरंतर बढ़ती जा रही थी... इतने में ही बाकी, थोड़े समझदार टाइप, संभवतः अधेड़ उम्र के तिलूले भी युवाओं के पीछे हो लिए...मैं अब थोड़ा हतप्रभ था...ये सब भाग क्यों रहे हैं? किस से भाग रहे हैं? भाग कर जाने कहाँ वाले हैं? इत्यादि इत्यादि प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक थे...बस चावल थाल में निकाल कर धूप में रखे, कोई दवा नहीं डाली पर एक एक कर के सारे तिलूले चावल में से निकल कर भागे और....देखते ही देखते तिलूलों की पहली खेप थाल से कुछ दूर जा कर अचानक रुक गयी... कोई हरकत नहीं, कोई हलचल नहीं...धीरे-धीरे पीछे से आते हुए तिलूले भी रुकते जा रहे थे...मेरा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था...नज़दीक से विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ, सब मर चुके थे!!.... पर कैसे? कुछ किया ही नहीं, कोई दवा नहीं डाली तो कैसे मरे?...मैं 15-20 मिनट ध्यान से देखता रहा तो समझ आया कि ये सब तिलूले असल में थकान से मरते गए... ज़िन्दगी भर बेचारे अपने छोटे से डब्बे या पैकेट के अंदर घूमते रहते, दौड़ते रहते....थोड़ी सी धूप लगते ही, किसी ज्ञानी तिलूले ने उकसाया होगा, "कुछ नहीं होगा...समय भी खूब है, जगह भी खूब है, करने को कुछ नहीं...चलो 'फिट' रहने के लिए दौड़ लगाते हैं....बस सब निकल पड़े मैराथन पर... जिन लोगों ने ज़िन्दगी भर 50 मीटर रेस भी नहीं दौड़ी थी, सीधे मैराथन पर निकल पड़े.... और क्या होता? रास्ते में थक कर मरना ही था.
मेरी जैसे आँखें ही खुल गयीं..... जब आपने ज़िन्दगी भर कोई कसरत, व्यायाम या योग नहीं किया है, तो इस लॉक-डाउन में कृपया अचानक से किसी सेलेब्रिटी को instagram या tiktok पर देख कर अनावश्यक अपराध-बोध से ग्रस्त होने से बचें... मन की हीन भावना को शरीर की लाचारी पर कदाचित हावी मत होने दें... कुछ ना समझ आये तो पलंग की चादर ठीक-ठाक कीजिये, रिमोट पर कब्ज़ा कीजिये, तकिया लगाइये, पैरों को लम्बा कीजिये ... और शुरू हो जाईये... इधर-उधर 2 -4 किलो बढ़ जाएंगे तो चलेगा... जान है तो जहान है...याद रखिये, आप इंसान हैं, तिलूले नहीं.
इन सब के अलावा तो सब अपनी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं... सबके अपने अपने दुःख हैं और उन से भी बढ़ कर अपने अपने दुखड़े... आज, 17 दिन के लॉक-डाउन के बाद, भारत का हर टीवी चैनल एक मेडिकल-साइंस चैनल है और पुराने, प्रतिष्ठित चैनल्स जैसे डिस्कवरी, नॅशनल जियोग्राफिक या बीबीसी अर्थ से काफी आगे निकल गया है. हमारे टीवी ऐंकर्स कोरोना के इतने बड़े विशेषज्ञ बन कर उभरे हैं जैसे हम सदियों से इस बीमारी से निपट रहे हैं... साथ ही, हमेशा की तरह, हर बिल्डिंग या सोसायटी में कम से कम एक बुज़ुर्ग टाइप के अंकल ज़रूर मिल जाएंगे जिन्होंने कोरोना को अपने सामने पैदा होते, खेलते और बड़े होते हुए देखा है और वो इस से अच्छी तरह से निपटना जानते हैं. उनके पास कोरोना के हर लक्षण के लिए कोई न कोई घरेलू नुस्खा होता है और उन्होंने अपनी जवानी से ले कर अब तक कई लोगों को इसी तरह के 'कोरोनामय' लक्षणों के लिए ठीक भी किया होता है... शुरूआती घबराहट के बाद अब लोगों ने धीरे धीरे कोरोना की विचलित कर देने वाली खबरों और लॉक-डाउन की बड़ी सच्चाई के साथ जीना सीख लिया है या कम से कम जीना सीखना शुरू तो कर ही दिया है.
इसी कड़ी में हमारे ध्यान-खेंचू (Attention-Seeking), स्वघोषित सेलेब्रिटीज़ ने सोशल-मीडिया का शोषण ज़ोर-शोर से शुरू कर दिया है. कोई झाड़ू लगा रहा है, कोई बर्तन धो रहा है, कोई खाना पका रहा है और हम सब 'फैंस' से उम्मीद लगा के बैठा है कि हम झट से उनकी Posts को Like या retweet करेंगे और उसके नीचे बड़े बड़े 'Wow' या 💖 के इमोजी से प्रतिक्रिया देंगे...इसके अलावा एक बहुत बड़ा तबका रोज़ाना अपने व्यायाम करते हुए वीडियो डालता है... आप एक बार तो सोचने को मजबूर ही हो जाते हैं की ये एक फिल्म या टीवी के कलाकार हैं या कोई Gym-Instructor? कई सेलेब्रिटीज़ अचानक से हम सब को योग सिखाने लगे हैं और शुरुआत ही सीधे, कठिनतम, बकासन से कर रहे हैं... कुछ का कहना है कि वो अपनी बिल्डिंग की छत पर ही जॉगिंग या ब्रिस्क-वॉक कर रहे हैं... ये सब देख सुन कर कभी कभी तो ऐसा लगने लगता है जैसे सिर्फ हम ही निठल्ले हैं और गुपचुप तरीके से इस लॉक-डाउन का मज़ा उठा रहे हैं, सिर्फ टीवी या इंटरनेट पर ही समय व्यतीत कर रहे हैं.... चूँकि प्रधानमंत्री जी ने कह भी दिया है कि घर पर बैठना ही आज के समय में सच्ची देश सेवा है, हम खुद को और घर वालों को तसल्ली देते नहीं थक रहे कि 'देश सेवा चल रही है....ये आलस नहीं है'.
.. तमाम सोशल-मीडिया पर बिखरे पड़े वीडियो और चित्रों को देखने और सुनने के बाद, अपराध बोध से ग्रस्त, मैंने भी अपने लिए 'उचित' गृह-कार्य ढूंढना शुरू किया...बर्तन मांजने, झाड़ू-पोंछा करने, पंखों की सफाई, घर के पर्दे बदलने इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक पर मैं लक्ष्य साधने को ही था कि पार्श्व में आवाज़ गूंजी..."चावल में तिलूले पड़ रहे हैं... इनको ज़रा धूप दिखाओ... ये कोरोना के चक्कर में सामान ला ला कर भर लिया है, अब कीड़े पड़ रहे हैं... कब तक संभाल के रखेंगे..." जो नहीं जानते, 'तिलूले' लम्बे समय तक बिना उपयोग किये गए चावल या अन्य अनाजों में पैदा हुए सबसे सामान्य कीड़े हैं जो 'बीटल' परिवार के कीट हैं मनुष्यों एवं जानवरों के लिए हानिकारक नहीं हैं. इनका अंग्रेजी नाम Weevil है... और जिनका आपके अनाज में होना इस बात का द्योतक है कि आपके अनाज में किसी हानिकारक कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया गया है और गला फ़ाड़-फ़ाड़ के 'ऑर्गेनिक' चिल्लाने वाले आपके सुपरमार्केट ने आपको वास्तव में 'ऑर्गेनिक' उत्पाद दिया है (ये ज्ञान, गूगल पर उपलब्ध स्रोतों से प्रतुत है).
बहरहाल, लॉक-डाउन के चक्कर में दाल-चावल ज़्यादा ही स्टॉक कर लिया है. वैसे लॉक-डाउन की आड़ में ये बार-बार किराना ना लेने जाने की छोटी-मोटी कोशिश भी थी...घर में स्टॉक ज़्यादा पड़ा है और ये सोशल-मीडिआ वाले सेलेब्रिटीज़ खाने पर रोक लगाने पर तुले हुए हैं... अगर आप नियमित दिनचर्या का पालन नहीं कर रहे, तो सुबह-शाम नाश्ते में कटौती कीजिये...दिन के खाने में और रात के डिनर में एक-एक रोटी कम कर दीजिये... अगर व्यायाम नहीं कर कर रहे हैं तो चावल खाने पर कुछ दिन रोक लगाइये... अनाज का सेवन कम कीजिये, हरी सब्ज़ियां और फल ज़्यादा खाइये...अरे हुज़ूर, जो स्टॉक में है वो खाने नहीं दे रहे, जो खाने का सुझाव दे रहे हो वो न तो अब (17 -18 दिन बाद) स्टॉक में बचा है और (लॉक-डाउन के चलते) ना बाहर जाने दे रहे हो... ख़ैर, पार्श्व की वो आवाज़ अब आदेश में बदल चुकी थी..."धूप चली जाएगी...तब रखोगे क्या चावल धूप में?...प्रधानमंत्री जी ने घर में रहने को कहा है, ये नहीं कहा कोई काम नहीं करोगे!"
बे मन से उठते हुए मैंने चावल का डब्बा एक हाथ में उठाया और दूसरे में घर में उपलब्ध सबसे बड़ा थाल...और चल पड़ा धूप में तिलूलों का विनाश करने... बहुत दिनों बाद कोई काम हाथ में लिया था, लग रहा था हाथ में तलवार और ढाल है और आज दुनिया ही बदल दूंगा... घर की लगभग आधी बालकनी में अभी भी धूप बची थी पर वो भी निरंतर पीछे सरकती जा रही थी... मैंने डब्बे के चावल उड़ेले और धूप को पकड़ने की कोशिश करते हुए, थाल बची हुई तेज़ धूप में रख दिया...चूँकि आजकल समय की कोई कमी नहीं है, मैं वहीँ छाया में ये प्रयोग देखने बैठ गया की धूप में ये तिलूले चावल को कैसे छोड़ भागते हैं? 4-5 मिनिट में ही सफ़ेद-सफ़ेद चावल में ज़ीरे सामान एक्के-दुक्के तिलूले नज़र आने लगे...धूप में उनकी बेचैनी नज़र आ रही थी...मैं बैठा-बैठा उनकी अगली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगा...कुछ अति-उत्साहित, और संभवतः नयी-नयी बाइक खरीदे हुए, तिलूले सबसे पहले सरपट भागते हुए थाल की किनार पर इकट्ठा होने लगे...मेरी जिज्ञासा निरंतर बढ़ती जा रही थी... इतने में ही बाकी, थोड़े समझदार टाइप, संभवतः अधेड़ उम्र के तिलूले भी युवाओं के पीछे हो लिए...मैं अब थोड़ा हतप्रभ था...ये सब भाग क्यों रहे हैं? किस से भाग रहे हैं? भाग कर जाने कहाँ वाले हैं? इत्यादि इत्यादि प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक थे...बस चावल थाल में निकाल कर धूप में रखे, कोई दवा नहीं डाली पर एक एक कर के सारे तिलूले चावल में से निकल कर भागे और....देखते ही देखते तिलूलों की पहली खेप थाल से कुछ दूर जा कर अचानक रुक गयी... कोई हरकत नहीं, कोई हलचल नहीं...धीरे-धीरे पीछे से आते हुए तिलूले भी रुकते जा रहे थे...मेरा आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था...नज़दीक से विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ, सब मर चुके थे!!.... पर कैसे? कुछ किया ही नहीं, कोई दवा नहीं डाली तो कैसे मरे?...मैं 15-20 मिनट ध्यान से देखता रहा तो समझ आया कि ये सब तिलूले असल में थकान से मरते गए... ज़िन्दगी भर बेचारे अपने छोटे से डब्बे या पैकेट के अंदर घूमते रहते, दौड़ते रहते....थोड़ी सी धूप लगते ही, किसी ज्ञानी तिलूले ने उकसाया होगा, "कुछ नहीं होगा...समय भी खूब है, जगह भी खूब है, करने को कुछ नहीं...चलो 'फिट' रहने के लिए दौड़ लगाते हैं....बस सब निकल पड़े मैराथन पर... जिन लोगों ने ज़िन्दगी भर 50 मीटर रेस भी नहीं दौड़ी थी, सीधे मैराथन पर निकल पड़े.... और क्या होता? रास्ते में थक कर मरना ही था.
मेरी जैसे आँखें ही खुल गयीं..... जब आपने ज़िन्दगी भर कोई कसरत, व्यायाम या योग नहीं किया है, तो इस लॉक-डाउन में कृपया अचानक से किसी सेलेब्रिटी को instagram या tiktok पर देख कर अनावश्यक अपराध-बोध से ग्रस्त होने से बचें... मन की हीन भावना को शरीर की लाचारी पर कदाचित हावी मत होने दें... कुछ ना समझ आये तो पलंग की चादर ठीक-ठाक कीजिये, रिमोट पर कब्ज़ा कीजिये, तकिया लगाइये, पैरों को लम्बा कीजिये ... और शुरू हो जाईये... इधर-उधर 2 -4 किलो बढ़ जाएंगे तो चलेगा... जान है तो जहान है...याद रखिये, आप इंसान हैं, तिलूले नहीं.