"चैन से सोना है तो जाग जाइए" ....वैसे तो सोने की ऊपर-नीचे होती कीमतों ने चैन से सोना लगभग दूभर ही कर दिया है पर शनिवार 18 जुलाई 2015 की उस अलस्सुबह मैं लगभग साढ़े चार बजे जाग ही गया. पुणे में मेरी चचेरी बहन की लड़की, चिकि, की सगाई में जो शामिल होना था. संभवतः मेरी दीदी और जीजाजी पहली मर्तबा मुबई से पुणे जाते हुए, 'नीता वोल्वो' की अगल-बगल की सीटों पर लोनावला में ही मिले थे... और अपनी बड़ी बेटी का नाम उन्होंने 'चिकि' रख दिया (How Sweet... & Crunchy naa!!). बहरहाल, भान्जी की सगाई में शामिल होने के लिए मैं, गोपाल गौतम, सुबह 8.40 की 'उद्यान-एक्सप्रेस' पकड़ने मुंबई छत्रपति शिवाजी स्टेशन पहुँच गया.
ट्रेन में confirm टिकट मिल जाना अभी भी हम भारतीय लोगों के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है. ट्रेन-कोच के बाहर चिपके, dot-matrix -printer के उस print -out में अपना नाम और उम्र दिखना सचमुच काफी सुकून देता है. लिस्ट में 'गोपाल गौतम, 24, पुरुष' देख कर मैं इत्मीनान से S-3 कोच में दाखिल हुआ और अपनी सीट 10 (Middle-Berth) पर जा कर बैठ गया... फिर यकायक मन में आया की देखूं तो इस सफ़र में मेरे हमसफ़र कौन कौन हैं. मैं उठा और कोच के बाहर लगी लिस्ट को ध्यान से पढ़ने लगा :
९. बलवंत शर्मा .............. 46 ..... पुरुष
१०. गोपाल गौतम .............24 ..... पुरुष
११. योगेश म्हात्रे ............... 39 .....पुरुष
१२. सुधा योगेश म्हात्रे ...... 35 ..... स्त्री
१३. ममता चतुर्वेदी ........... 29 ...... स्त्री
१४. वर्षा दुबे ......................23 ...... स्त्री
ख़ैर... गोपाल गौतम लिस्ट देख कर अपनी सीट पर आ कर बैठ गया और अपने सह-यात्रियों का इंतज़ार करने लगा. जैसे-जैसे गाड़ी चलने का समय नज़दीक आता गया, लोग आ कर बैठने लगे. गोपाल के सह-यात्री लगभग उसी क्रम में आये जिस क्रम में शायद वे दुनिया में आये होंगे. बलवंत शर्मा शायद कहीं विदेश से लौटे थे , वो अपने नए नए हासिल 'एक्सेंट' को अन्य यात्रियों के दिमाग में और वो २५-२५ किलो के दो बड़े-बड़े सूटकेस को बर्थ के नीचे जबरन घुसेड़ने की कोशिश कर रहे थे. फिर म्हात्रे मियाँ-बीवी पहुंचे. पहुँचते ही म्हात्रे साब ने मुझे टार्गेट किया - "आप अकेले हैं तो बर्थ एक्सचेंज कर लेंगे क्या?"... फिर उनको अचानक अहसास हुआ की बीवी की तो Lower बर्थ है, वो भी हाथ से जाएगी. तुरंत ही बीवी से मुख़ातिब हो बोले, "अरे आमने-सामने की तो हैं ही, तुम क्यों परेशां हो रही हो?"... गाड़ी लगभग चलने को ही थी की 'चिंटू' भागता हुआ आया... और सामने वाली बर्थ पर खिड़की की तरफ बैठ गया (जो श्रीमती म्हात्रे की थी) इधर उसके सामने वाली खिड़की पर मैंने कब्ज़ा कर रखा था (बर्थ हालाँकि शर्मा जी की थी पर उन्होंने एक दानवीर NRI की तरह उदारता का परिचय देते हुए मुझे दे दी थी)... किसी तरह एक बड़े से बेडौल बैग को घसीटते हुए, एक हाथ मैं टिकट निकाले, कंधे पर हैण्ड-बैग टाँगे और निरंतर "चिंटू.. चिंटू...... देखो भाग रहे हो न... बिलकुल नहीं सुन रहे हो न हमारी..." आदि कहते कहते चिंटू की मम्मी - ममता चतुर्वेदी का आगमन हुआ, उनके बिलकुल पीछे ही- मुस्कुराती हुई, एक हाथ में Bisleri की बोतल और दुसरे में एक बैग लिए वर्षा जी खड़ी थी. उन दोनों को देखते ही चिंटू बोला, "मौसी... खिड़की के पास मैं बैठूँगा!". सब मौसी की तरफ देख रहे थे. ममता जी की बहन और चिंटू की मौसी, वर्षा.
ट्रेन नियत समय पर चल पड़ी. श्रीमती म्हात्रे, जिनकी सीट पर चिंटू ने कब्ज़ा कर रखा था, बोल ही पड़ी, "आप लोगों की तो मिडिल और ऊपर की बर्थ है ना? ". मैं जैसे मौके का इंतज़ार ही कर रहा था... मैंने तपाक से कहा... "...हाँ... हाँ, इधर आ जाओ चिंटू... इस खिड़की पर बैठ जाओ.."....चिंटू बोला, " थैंक यू, भैय्या... मौसी तुम भी इधर आ जाओ ना". मैं मन ही मन बुदबुदाया, "थैंक यू, चिंटू!"... "हाँ ..... हाँ.... मौसी, आप भी इधर ही आ जाओ ना, जगह है इधर!". वर्षा झेंपते हुए बोली, "मैं चिंटू की मौसी हूँ!"...और वो उठ कर इधर मेरी बगल में चिंटू के पास आ कर बैठ गयी. इए बर्थ पर अब जगह थोड़ी कम पड़ रही थी, पर हम भारतियों को तो आभाव में जीने की जैसे आदत ही है - मैं, शर्मा जी और म्हात्रे जी अब भी मुस्कुरा रहे थे. म्हात्रे जी की धर्मपत्नी, सुधा, जो सामने ही बैठी थी, उनको म्हात्रे जी का वर्षा जी पर टकटकी लगाये मुस्कुराना शायद बर्दाश्त नहीं हुआ और १० बेचैनी भरे मिनिट के बाद वो फट पड़ी, "अरे ... सब लोग उधर ही बैठोगे क्या?... आप इस तरफ क्यों नहीं आ जाते?" म्हात्रे जी के पास कोई जवाब नहीं था, बेचारे उठ कर सामने वाली बर्थ पर जा बैठे. अपनी झेंप छुपाते हुए वो बोले, '' हाँ भाई चिंटू, तो तुम्हारा नाम क्या है?" चिंटू अपने रेट-रटाये लहजे में बोल पड़ा, "My name is Chinmay Chaturvedi... Father's name Mr Harish Chaturvedi... Mother's name Mrs Mamta Chaturvedi..." मेरे बगल में बैठे शर्मा जी जो अब तक Foreign-returned-sophistication का लबादा ओढ़े हुए थे अपने आप को रोक नहीं सके, "... और मौसी जी का नाम बेटा?"... और मैं अब तक सोच रहा था, इन ६ बर्थ में मुझे कोई competition ही नहीं है..."अरे अंकल, मौसी का नाम तो वर्षा दुबे है ना"... तभी चिंटू की मम्मी, ममता जी कूद पड़ीं, "हमारी वर्षा अभी बी.कॉम. III Year में पढ़ रही है, हमेशा से 1st Division आयी है, १-२ साल में इसकी भी शादी करनी ही है, हम लोग सरयूपारी ब्राह्मण हैं, ... वैसे आप लोग कहाँ के रहने वाले हैं, शर्मा जी?" मैं, गोपाल गौतम, जो अभी तक अपने आप को सबसे योग्य वर समझ रहा था, चुपचाप बैठा सबके मुँह देख रहा था... अपनी बीवी की घूरती नज़रों से बचते हुए म्हात्रे जी ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाये... "... वैसे ममता जी आप पहली बार ही पुणे जा रही हैं ना... ये बहुत ही खूबसूरत रास्ता है... और हाँ रास्ते में कर्जत का वडा-पाव ज़रूर चाखियेगा"... शर्माजी ने भी ज़ोर से हाँ में हाँ मिलाई... ममता जी तुरंत बोली,"अरे वडा-पाव तो हमारे चिंटू का favorite है भाई... हाँ वर्षा को उतना पसंद नहीं है... वो इन लोगों के आजकल पिम्पल-विम्पल के बहुत लफड़े रहते हैं ना ". अपनी महत्ता और ज्ञान का परिचय देते हुए मैं, थोड़ा सा सीना चौड़ा करते हुए और वर्षा जी की तरफ देखता हुआ बोला - ये ट्रेन कर्जत रूकती ही नहीं है. सुपरफास्ट है! ... म्हात्रे जी की एक बार और कट गयी... उन्होंने बची-खुची इज्ज़त समेटते हुए ऐलान किया ... अच्छा, लोनावला का वडा-पाव भी ठीक है... चलो फिर सब लोनावला आने पर ही वडा-पाव खायेंगे...
बहरहाल, ट्रेन कोंकण-रेल्वे के अपने सफ़र पर आगे बढ़ती जा रही थी. अभी-अभी 'कल्याण जंक्शन' निकला था और सब पुणे जा रहे थे पर म्हात्रे जी पुणे से ज्यादा शायद लोनावला का इंतज़ार कर रहे थे ..."सुधा, लोनावला 10.30 तक आ जायेगा.." उनकी बेचैनी को ले कर उनकी धर्मपत्नी ज़्यादा बेचैन थीं. तीनों मर्दों की अवस्था लगभग एक जैसी ही थी - तीनों विश्व की तमाम समस्याओं को छोड़ वडा-पाव पर ध्यान लगाये हुए थे। सारी प्रतियोगिता इसी में थी की वर्षा जी को वडा-पाव कौन खिलायेगा। मुझे भी बेचैनी थी की लोनावला आज शायद किसी ने आगे खिसका दिया है.....आता ही नहीं दिख रहा!...
... तभी ट्रेन एक Tunnel में दाखिल हुई.... "भू s s s ....त ....." चिंटू चीखा...."चिंटू .... पागल हो क्या?...मैं डर गयी ना…" चीखती हुई वर्षा चिंटू से ही चिपक गयी .... मैंने भी चिंटू को समझाइश देते हुए कहा "...नहीं बेटा .... ऐसा नहीं करते ..." पर अन्दर ही अन्दर कोंकण रेल्वे की मुंबई-पुणे के बीच बनी 8 -10 tunnels में से अगली Tunnel का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा...चिंटू भी शायद अगली Tunnel का इंतज़ार कर रहा था .... मैंने बात आगे बढाई ..."किस क्लास में पढ़ते हो भाई चिंटू ?" वर्षा जी ने दखल दिया "... 2nd में आ गया है…पर पढ़ता कहाँ है ये!..." मैंने भी एक क़दम आगे बढ़ाते हुए कहा "अरे...मौसीजी आप पढ़ाएंगी तो क्यूँ नहीं पढ़ेगा ?" चिंटू की मम्मी, ममता जी जो अब तक श्रीमती म्हात्रे से एकता कपूर के टीवी सीरिअल्स डिस्कस कर रही थीं, हमारी 'आपसी' परिचर्चा में कूद पड़ीं "... अरे ये बहुत बदमाश हो गया है… इस बेचारी की सुनता है क्या?"...वो दोबारा 'बालिका-वधु' में तल्लीन हो गयीं। हम लोग चिंटू के बहाने एक दूसरे को जानने में लग गए। "आप कहीं Job क्यूँ नहीं शुरू कर देतीं ?"...वर्षा जी बोलने लगीं "...मैं तो दीदी के कब से पीछे पड़ी हूँ ... पर ये बोलतीं हैं पहले शादी कर लो फिर जो जहाँ करना है, करना ..." बातों-बातों में अचानक घुप्प अँधेरा छा गया ... चिंटू चीखा "Tunnnnellllllllllll....." और वर्षा जी इस बार चिंटू की बजाय मेरी तरफ सिमट गयीं। मैं मन ही मन बोल रहा था "Thank you , Konkan Railway"... पर Tunnel उम्मीद से बहुत छोटी निकली ... वर्षा जी को पूरा डरने का मौका ही नहीं मिला, और ना ही मुझे संभालने का। फिर भी मैं माहौल कायम रखने के लिए बोले जा रहा थ… "रास्ते में अभी कई और Tunnels हैं ....और कुछ तो बहुत लम्बी और अँधेरी हैं…" शर्मा और म्हात्रे जी धीरे-धीरे कमोबेश ये स्वीकार करने लगे थे की वर्षा जी मुझ से दुनिया की समस्याओं पर चर्चा करने में तल्लीन हैं। ममता और सुधा जी भी उनको एकता कपूर के साथ बाँधे हुए थीं। ट्रेन धडधडाते हुए आगे बढ़ती जा रही थी - सब अपने अपने इंतज़ार में मशगूल थे - पुणे का शायद सभी कम ही इंतज़ार कर रहे थे। मैंने बात आगे बढ़ाई, "... पुणे जाने का सारा मज़ा रास्ते का ही है .... कर्जत का वड़ा-पाव, लोनावला की चिक्की ...."
वर्षा जी ने सफ़ाई दी ,"… पर मुझे मीठा ज़्यादा पसंद नहीं है", चिंटू ने भी हाँ में हाँ मिलाई, "मीठा ज़्यादा खाने से दांत में कीड़ा लग जाता है ना, मौसी?"… मैं भी कहाँ चूकने वाला था,मैंने भी जोड़ दिया "हाँ, हाँ.… मीठा खाने से मोटे भी होते हैं".... म्हात्रे जी से मेरा ज्ञान (और उस से ज़्यादा, मेरी बढ़ती नज़दीकी) शायद बर्दाश्त नहीं हो रहा था. वो फिर कूद पड़े, "अरे भाई, मोटे तो आप नमकीन या तला हुआ खा कर भी हो सकते हैं …मीठा बेवजह बदनाम है". श्रीमती म्हात्रे ने भवें तानते हुए मराठी में कुछ बुदबुदाया और झिड़क के बोलीं, "आप अपने आप को देखिये, हवा भो खाते हैं तो मोटे हो जाते हैं.…" इसके पहले की ममता जी और वर्षा उनके पेट (तोंद) की तरफ देखती, म्हात्रे जी ने साँस खींचते हुए पेट अंदर लिया और दलील दी "अरे भाई, हमारा पेट तो Genetic है…हमारे पिताजी और दादाजी के भी पेट निकले हुए थे". मुझे थोड़ा मौका मिल गया. ये भांपते हुए की म्हात्रे जी को Competition से हटाने का ये एक मौका है, मैंने भी व्यंग्य किया "सर, उम्र के साथ भी पेट बाहर आ ही जाता है". हमारी संस्कृति में पत्नी को आखिर धर्म-पत्नी यूँ ही नहीं कहा जाता, श्रीमती म्हात्रे ने पत्नी-धर्म निभाते हुए संभाला, "हाँ, ये ठीक कह रहे हैं, इनका थोड़ा पेट तो हमारी शादी में ही निकला हुआ था.… ये इनके परिवार में ही है". वर्षा जी की हंसी फूट पड़ी. हम तीनों मर्दों का साथ में हंसना स्वाभाविक था. शर्मा जी जो अब तक सब सुन रहे थे, ज़्यादा ही ज़ोर से हंस पड़े और उन्होंने भी एक झटका दिया "पर भाई, अमेरिका में लोग बहुत Conscious हैं, आपको बहुत काम लोगों की तोंद दिखेगी". फिर उनको शायद अपनी भी तोंद का अहसास हुआ,"अरे भाई, पर वो भी कोई खाना है क्या....बस उबला हुआ,ना तेल ना मसाले....मरीज़ों का खाना होता है वहाँ". सब ने सांत्वना देते हुए हाँ में हाँ मिलायी।
तभी ट्रेन लोनावला पहुँच गयी. श्रीमती म्हात्रे को अनदेखा करते हुए, म्हात्रे जी ने ऐलान किया "वडा-पाव कौन कौन खायेगा?". चूँकि शर्मा जी ये मौका चूक गए थे,उन्होंने मेरी अधीरता को सहारा दिया "अरे भाई म्हात्रे जी, अब आप कहाँ जाएंगे.... ट्रेन यहां ज़्यादा रूकती नहीं है…ये जवां लोगों को जाने दीजिये…ये लो भाई गौतम, 12 वडा-पाव ले आओ" मैंने व्यंग्य करते हुए वर्षा जी को छेड़ा "अच्छा, चिंटू और मौसी के लिए एक-एक…हाँ भाई मौसी का पिम्पल-विम्पल का भी चक्कर है" तीर निशाने की तरफ बढ़ चला था…वर्षा जी झेंपते-मुस्कुराते हुए बोलीं "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है… बस अभी ज़्यादा भूख नहीं है." मैंने भी ज़्यादा वक़्त ना बर्बाद करते हुए, स्टेशन पर एक वडा-पाव वाले का रुख किया … 3-4 मिनिट में मैं गरम-गरम वडा-पाव के साथ वापस ट्रेन में था. ममता जी ने सबको एक-एक वडा-पाव बाँटा…इस बीच वर्षा जी, मौका देख कर, अपने मोबाइल से चिपक गयीं....शर्मा जी ने अनौपचारिक होने की कोशिश की "… अरे वर्षा जी, लीजिये…ठन्डे हो जाएंगे…गोपाल बहुत बढ़िया वडा-पाव लाये हैं" मुझे लगा जैसे मैंने Olympic में मेडल जीत लिया, थोड़ी विनयशीलता (Modesty) दिखाते हुए मैंने छेड़ा "अरे अंकल,हम तो जो मिल रहे थे वही लाए हैं पर वर्षा जी को फुर्सत कहाँ है अपने मोबाइल से!!". ममता जी ने भी कटाक्ष किया "आजकल दिनभर बस मोबाइल से ही चिपकी रहती है...वही सब Facebook, Whatsapp वगैरह दिन भर.…" म्हात्रे जी की जिज्ञासा फिर जागी "अरे वर्षा जी, आप Whatsapp पर हैं क्या?… ज़रा हमको Add कीजिये....हमारा नंबर है 9243XXXXX6.... आपका नंबर बोलिए?" वर्षा जी अभी तक ढंग से झिझक भी नहीं पायीं थीं कि चिंटू तपाक से बोल पड़ा "अच्छा मौसी का नंबर?.... मौसी का नंबर है 9857xxxxx8" मैंने, शर्मा जी और म्हात्रे जी ने फ़टाफ़ट वर्षा जी को Add किया और मन ही मन चिंटू के प्रति 'धन्यवाद प्रस्ताव' पारित किया। उतावलेपन में म्हात्रे जी मेरे 'मन की बात' कह गए "चलो अच्छा है, वर्षा जी से Whatsapp पर भी जुड़े रहेंगे …ऐसे ही तो दोस्ती हो जाती है". सुनते ही श्रीमती म्हात्रे ने म्हात्रे जी को घूरा और म्हात्रे जी चिंटू को छेड़ने लगे.
मैंने फ़टाफ़ट यार-दोस्तों के पुराने Messages से कुछ शेर-शायरी खंगालना शुरू किया और वर्षा जी की Whatsapp Profile की तरफ़ 'भागा'… उनका Status Message था "With 3 Jokers in Train...Romantic Weather,Missing u my love (Rohan)"........की.… ई ई ई ई ई …च च च.… की आवाज़ करते हुए ट्रेन अचानक ही रुकने लगी. मैं, शर्मा जी और म्हात्रे जी एक साथ बोल पड़े "अरे, शायद किसी ने चेन खींच दी है!!!" वर्षा जी की दीदी, ममता जी ने टोका "अरे भाई, पुणे आ गया है, ट्रेन स्टेशन पहुंच रही है"
मन मसोस कर मैंने अपने आप को दिलासा दी "अच्छा हुआ, समय से पुणे आ गया"
९. बलवंत शर्मा .............. 46 ..... पुरुष
१०. गोपाल गौतम .............24 ..... पुरुष
११. योगेश म्हात्रे ............... 39 .....पुरुष
१२. सुधा योगेश म्हात्रे ...... 35 ..... स्त्री
१३. ममता चतुर्वेदी ........... 29 ...... स्त्री
१४. वर्षा दुबे ......................23 ...... स्त्री
ख़ैर... गोपाल गौतम लिस्ट देख कर अपनी सीट पर आ कर बैठ गया और अपने सह-यात्रियों का इंतज़ार करने लगा. जैसे-जैसे गाड़ी चलने का समय नज़दीक आता गया, लोग आ कर बैठने लगे. गोपाल के सह-यात्री लगभग उसी क्रम में आये जिस क्रम में शायद वे दुनिया में आये होंगे. बलवंत शर्मा शायद कहीं विदेश से लौटे थे , वो अपने नए नए हासिल 'एक्सेंट' को अन्य यात्रियों के दिमाग में और वो २५-२५ किलो के दो बड़े-बड़े सूटकेस को बर्थ के नीचे जबरन घुसेड़ने की कोशिश कर रहे थे. फिर म्हात्रे मियाँ-बीवी पहुंचे. पहुँचते ही म्हात्रे साब ने मुझे टार्गेट किया - "आप अकेले हैं तो बर्थ एक्सचेंज कर लेंगे क्या?"... फिर उनको अचानक अहसास हुआ की बीवी की तो Lower बर्थ है, वो भी हाथ से जाएगी. तुरंत ही बीवी से मुख़ातिब हो बोले, "अरे आमने-सामने की तो हैं ही, तुम क्यों परेशां हो रही हो?"... गाड़ी लगभग चलने को ही थी की 'चिंटू' भागता हुआ आया... और सामने वाली बर्थ पर खिड़की की तरफ बैठ गया (जो श्रीमती म्हात्रे की थी) इधर उसके सामने वाली खिड़की पर मैंने कब्ज़ा कर रखा था (बर्थ हालाँकि शर्मा जी की थी पर उन्होंने एक दानवीर NRI की तरह उदारता का परिचय देते हुए मुझे दे दी थी)... किसी तरह एक बड़े से बेडौल बैग को घसीटते हुए, एक हाथ मैं टिकट निकाले, कंधे पर हैण्ड-बैग टाँगे और निरंतर "चिंटू.. चिंटू...... देखो भाग रहे हो न... बिलकुल नहीं सुन रहे हो न हमारी..." आदि कहते कहते चिंटू की मम्मी - ममता चतुर्वेदी का आगमन हुआ, उनके बिलकुल पीछे ही- मुस्कुराती हुई, एक हाथ में Bisleri की बोतल और दुसरे में एक बैग लिए वर्षा जी खड़ी थी. उन दोनों को देखते ही चिंटू बोला, "मौसी... खिड़की के पास मैं बैठूँगा!". सब मौसी की तरफ देख रहे थे. ममता जी की बहन और चिंटू की मौसी, वर्षा.
ट्रेन नियत समय पर चल पड़ी. श्रीमती म्हात्रे, जिनकी सीट पर चिंटू ने कब्ज़ा कर रखा था, बोल ही पड़ी, "आप लोगों की तो मिडिल और ऊपर की बर्थ है ना? ". मैं जैसे मौके का इंतज़ार ही कर रहा था... मैंने तपाक से कहा... "...हाँ... हाँ, इधर आ जाओ चिंटू... इस खिड़की पर बैठ जाओ.."....चिंटू बोला, " थैंक यू, भैय्या... मौसी तुम भी इधर आ जाओ ना". मैं मन ही मन बुदबुदाया, "थैंक यू, चिंटू!"... "हाँ ..... हाँ.... मौसी, आप भी इधर ही आ जाओ ना, जगह है इधर!". वर्षा झेंपते हुए बोली, "मैं चिंटू की मौसी हूँ!"...और वो उठ कर इधर मेरी बगल में चिंटू के पास आ कर बैठ गयी. इए बर्थ पर अब जगह थोड़ी कम पड़ रही थी, पर हम भारतियों को तो आभाव में जीने की जैसे आदत ही है - मैं, शर्मा जी और म्हात्रे जी अब भी मुस्कुरा रहे थे. म्हात्रे जी की धर्मपत्नी, सुधा, जो सामने ही बैठी थी, उनको म्हात्रे जी का वर्षा जी पर टकटकी लगाये मुस्कुराना शायद बर्दाश्त नहीं हुआ और १० बेचैनी भरे मिनिट के बाद वो फट पड़ी, "अरे ... सब लोग उधर ही बैठोगे क्या?... आप इस तरफ क्यों नहीं आ जाते?" म्हात्रे जी के पास कोई जवाब नहीं था, बेचारे उठ कर सामने वाली बर्थ पर जा बैठे. अपनी झेंप छुपाते हुए वो बोले, '' हाँ भाई चिंटू, तो तुम्हारा नाम क्या है?" चिंटू अपने रेट-रटाये लहजे में बोल पड़ा, "My name is Chinmay Chaturvedi... Father's name Mr Harish Chaturvedi... Mother's name Mrs Mamta Chaturvedi..." मेरे बगल में बैठे शर्मा जी जो अब तक Foreign-returned-sophistication का लबादा ओढ़े हुए थे अपने आप को रोक नहीं सके, "... और मौसी जी का नाम बेटा?"... और मैं अब तक सोच रहा था, इन ६ बर्थ में मुझे कोई competition ही नहीं है..."अरे अंकल, मौसी का नाम तो वर्षा दुबे है ना"... तभी चिंटू की मम्मी, ममता जी कूद पड़ीं, "हमारी वर्षा अभी बी.कॉम. III Year में पढ़ रही है, हमेशा से 1st Division आयी है, १-२ साल में इसकी भी शादी करनी ही है, हम लोग सरयूपारी ब्राह्मण हैं, ... वैसे आप लोग कहाँ के रहने वाले हैं, शर्मा जी?" मैं, गोपाल गौतम, जो अभी तक अपने आप को सबसे योग्य वर समझ रहा था, चुपचाप बैठा सबके मुँह देख रहा था... अपनी बीवी की घूरती नज़रों से बचते हुए म्हात्रे जी ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाये... "... वैसे ममता जी आप पहली बार ही पुणे जा रही हैं ना... ये बहुत ही खूबसूरत रास्ता है... और हाँ रास्ते में कर्जत का वडा-पाव ज़रूर चाखियेगा"... शर्माजी ने भी ज़ोर से हाँ में हाँ मिलाई... ममता जी तुरंत बोली,"अरे वडा-पाव तो हमारे चिंटू का favorite है भाई... हाँ वर्षा को उतना पसंद नहीं है... वो इन लोगों के आजकल पिम्पल-विम्पल के बहुत लफड़े रहते हैं ना ". अपनी महत्ता और ज्ञान का परिचय देते हुए मैं, थोड़ा सा सीना चौड़ा करते हुए और वर्षा जी की तरफ देखता हुआ बोला - ये ट्रेन कर्जत रूकती ही नहीं है. सुपरफास्ट है! ... म्हात्रे जी की एक बार और कट गयी... उन्होंने बची-खुची इज्ज़त समेटते हुए ऐलान किया ... अच्छा, लोनावला का वडा-पाव भी ठीक है... चलो फिर सब लोनावला आने पर ही वडा-पाव खायेंगे...
बहरहाल, ट्रेन कोंकण-रेल्वे के अपने सफ़र पर आगे बढ़ती जा रही थी. अभी-अभी 'कल्याण जंक्शन' निकला था और सब पुणे जा रहे थे पर म्हात्रे जी पुणे से ज्यादा शायद लोनावला का इंतज़ार कर रहे थे ..."सुधा, लोनावला 10.30 तक आ जायेगा.." उनकी बेचैनी को ले कर उनकी धर्मपत्नी ज़्यादा बेचैन थीं. तीनों मर्दों की अवस्था लगभग एक जैसी ही थी - तीनों विश्व की तमाम समस्याओं को छोड़ वडा-पाव पर ध्यान लगाये हुए थे। सारी प्रतियोगिता इसी में थी की वर्षा जी को वडा-पाव कौन खिलायेगा। मुझे भी बेचैनी थी की लोनावला आज शायद किसी ने आगे खिसका दिया है.....आता ही नहीं दिख रहा!...
... तभी ट्रेन एक Tunnel में दाखिल हुई.... "भू s s s ....त ....." चिंटू चीखा...."चिंटू .... पागल हो क्या?...मैं डर गयी ना…" चीखती हुई वर्षा चिंटू से ही चिपक गयी .... मैंने भी चिंटू को समझाइश देते हुए कहा "...नहीं बेटा .... ऐसा नहीं करते ..." पर अन्दर ही अन्दर कोंकण रेल्वे की मुंबई-पुणे के बीच बनी 8 -10 tunnels में से अगली Tunnel का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा...चिंटू भी शायद अगली Tunnel का इंतज़ार कर रहा था .... मैंने बात आगे बढाई ..."किस क्लास में पढ़ते हो भाई चिंटू ?" वर्षा जी ने दखल दिया "... 2nd में आ गया है…पर पढ़ता कहाँ है ये!..." मैंने भी एक क़दम आगे बढ़ाते हुए कहा "अरे...मौसीजी आप पढ़ाएंगी तो क्यूँ नहीं पढ़ेगा ?" चिंटू की मम्मी, ममता जी जो अब तक श्रीमती म्हात्रे से एकता कपूर के टीवी सीरिअल्स डिस्कस कर रही थीं, हमारी 'आपसी' परिचर्चा में कूद पड़ीं "... अरे ये बहुत बदमाश हो गया है… इस बेचारी की सुनता है क्या?"...वो दोबारा 'बालिका-वधु' में तल्लीन हो गयीं। हम लोग चिंटू के बहाने एक दूसरे को जानने में लग गए। "आप कहीं Job क्यूँ नहीं शुरू कर देतीं ?"...वर्षा जी बोलने लगीं "...मैं तो दीदी के कब से पीछे पड़ी हूँ ... पर ये बोलतीं हैं पहले शादी कर लो फिर जो जहाँ करना है, करना ..." बातों-बातों में अचानक घुप्प अँधेरा छा गया ... चिंटू चीखा "Tunnnnellllllllllll....." और वर्षा जी इस बार चिंटू की बजाय मेरी तरफ सिमट गयीं। मैं मन ही मन बोल रहा था "Thank you , Konkan Railway"... पर Tunnel उम्मीद से बहुत छोटी निकली ... वर्षा जी को पूरा डरने का मौका ही नहीं मिला, और ना ही मुझे संभालने का। फिर भी मैं माहौल कायम रखने के लिए बोले जा रहा थ… "रास्ते में अभी कई और Tunnels हैं ....और कुछ तो बहुत लम्बी और अँधेरी हैं…" शर्मा और म्हात्रे जी धीरे-धीरे कमोबेश ये स्वीकार करने लगे थे की वर्षा जी मुझ से दुनिया की समस्याओं पर चर्चा करने में तल्लीन हैं। ममता और सुधा जी भी उनको एकता कपूर के साथ बाँधे हुए थीं। ट्रेन धडधडाते हुए आगे बढ़ती जा रही थी - सब अपने अपने इंतज़ार में मशगूल थे - पुणे का शायद सभी कम ही इंतज़ार कर रहे थे। मैंने बात आगे बढ़ाई, "... पुणे जाने का सारा मज़ा रास्ते का ही है .... कर्जत का वड़ा-पाव, लोनावला की चिक्की ...."
वर्षा जी ने सफ़ाई दी ,"… पर मुझे मीठा ज़्यादा पसंद नहीं है", चिंटू ने भी हाँ में हाँ मिलाई, "मीठा ज़्यादा खाने से दांत में कीड़ा लग जाता है ना, मौसी?"… मैं भी कहाँ चूकने वाला था,मैंने भी जोड़ दिया "हाँ, हाँ.… मीठा खाने से मोटे भी होते हैं".... म्हात्रे जी से मेरा ज्ञान (और उस से ज़्यादा, मेरी बढ़ती नज़दीकी) शायद बर्दाश्त नहीं हो रहा था. वो फिर कूद पड़े, "अरे भाई, मोटे तो आप नमकीन या तला हुआ खा कर भी हो सकते हैं …मीठा बेवजह बदनाम है". श्रीमती म्हात्रे ने भवें तानते हुए मराठी में कुछ बुदबुदाया और झिड़क के बोलीं, "आप अपने आप को देखिये, हवा भो खाते हैं तो मोटे हो जाते हैं.…" इसके पहले की ममता जी और वर्षा उनके पेट (तोंद) की तरफ देखती, म्हात्रे जी ने साँस खींचते हुए पेट अंदर लिया और दलील दी "अरे भाई, हमारा पेट तो Genetic है…हमारे पिताजी और दादाजी के भी पेट निकले हुए थे". मुझे थोड़ा मौका मिल गया. ये भांपते हुए की म्हात्रे जी को Competition से हटाने का ये एक मौका है, मैंने भी व्यंग्य किया "सर, उम्र के साथ भी पेट बाहर आ ही जाता है". हमारी संस्कृति में पत्नी को आखिर धर्म-पत्नी यूँ ही नहीं कहा जाता, श्रीमती म्हात्रे ने पत्नी-धर्म निभाते हुए संभाला, "हाँ, ये ठीक कह रहे हैं, इनका थोड़ा पेट तो हमारी शादी में ही निकला हुआ था.… ये इनके परिवार में ही है". वर्षा जी की हंसी फूट पड़ी. हम तीनों मर्दों का साथ में हंसना स्वाभाविक था. शर्मा जी जो अब तक सब सुन रहे थे, ज़्यादा ही ज़ोर से हंस पड़े और उन्होंने भी एक झटका दिया "पर भाई, अमेरिका में लोग बहुत Conscious हैं, आपको बहुत काम लोगों की तोंद दिखेगी". फिर उनको शायद अपनी भी तोंद का अहसास हुआ,"अरे भाई, पर वो भी कोई खाना है क्या....बस उबला हुआ,ना तेल ना मसाले....मरीज़ों का खाना होता है वहाँ". सब ने सांत्वना देते हुए हाँ में हाँ मिलायी।
तभी ट्रेन लोनावला पहुँच गयी. श्रीमती म्हात्रे को अनदेखा करते हुए, म्हात्रे जी ने ऐलान किया "वडा-पाव कौन कौन खायेगा?". चूँकि शर्मा जी ये मौका चूक गए थे,उन्होंने मेरी अधीरता को सहारा दिया "अरे भाई म्हात्रे जी, अब आप कहाँ जाएंगे.... ट्रेन यहां ज़्यादा रूकती नहीं है…ये जवां लोगों को जाने दीजिये…ये लो भाई गौतम, 12 वडा-पाव ले आओ" मैंने व्यंग्य करते हुए वर्षा जी को छेड़ा "अच्छा, चिंटू और मौसी के लिए एक-एक…हाँ भाई मौसी का पिम्पल-विम्पल का भी चक्कर है" तीर निशाने की तरफ बढ़ चला था…वर्षा जी झेंपते-मुस्कुराते हुए बोलीं "नहीं ऐसी कोई बात नहीं है… बस अभी ज़्यादा भूख नहीं है." मैंने भी ज़्यादा वक़्त ना बर्बाद करते हुए, स्टेशन पर एक वडा-पाव वाले का रुख किया … 3-4 मिनिट में मैं गरम-गरम वडा-पाव के साथ वापस ट्रेन में था. ममता जी ने सबको एक-एक वडा-पाव बाँटा…इस बीच वर्षा जी, मौका देख कर, अपने मोबाइल से चिपक गयीं....शर्मा जी ने अनौपचारिक होने की कोशिश की "… अरे वर्षा जी, लीजिये…ठन्डे हो जाएंगे…गोपाल बहुत बढ़िया वडा-पाव लाये हैं" मुझे लगा जैसे मैंने Olympic में मेडल जीत लिया, थोड़ी विनयशीलता (Modesty) दिखाते हुए मैंने छेड़ा "अरे अंकल,हम तो जो मिल रहे थे वही लाए हैं पर वर्षा जी को फुर्सत कहाँ है अपने मोबाइल से!!". ममता जी ने भी कटाक्ष किया "आजकल दिनभर बस मोबाइल से ही चिपकी रहती है...वही सब Facebook, Whatsapp वगैरह दिन भर.…" म्हात्रे जी की जिज्ञासा फिर जागी "अरे वर्षा जी, आप Whatsapp पर हैं क्या?… ज़रा हमको Add कीजिये....हमारा नंबर है 9243XXXXX6.... आपका नंबर बोलिए?" वर्षा जी अभी तक ढंग से झिझक भी नहीं पायीं थीं कि चिंटू तपाक से बोल पड़ा "अच्छा मौसी का नंबर?.... मौसी का नंबर है 9857xxxxx8" मैंने, शर्मा जी और म्हात्रे जी ने फ़टाफ़ट वर्षा जी को Add किया और मन ही मन चिंटू के प्रति 'धन्यवाद प्रस्ताव' पारित किया। उतावलेपन में म्हात्रे जी मेरे 'मन की बात' कह गए "चलो अच्छा है, वर्षा जी से Whatsapp पर भी जुड़े रहेंगे …ऐसे ही तो दोस्ती हो जाती है". सुनते ही श्रीमती म्हात्रे ने म्हात्रे जी को घूरा और म्हात्रे जी चिंटू को छेड़ने लगे.
मैंने फ़टाफ़ट यार-दोस्तों के पुराने Messages से कुछ शेर-शायरी खंगालना शुरू किया और वर्षा जी की Whatsapp Profile की तरफ़ 'भागा'… उनका Status Message था "With 3 Jokers in Train...Romantic Weather,Missing u my love (Rohan)"........की.… ई ई ई ई ई …च च च.… की आवाज़ करते हुए ट्रेन अचानक ही रुकने लगी. मैं, शर्मा जी और म्हात्रे जी एक साथ बोल पड़े "अरे, शायद किसी ने चेन खींच दी है!!!" वर्षा जी की दीदी, ममता जी ने टोका "अरे भाई, पुणे आ गया है, ट्रेन स्टेशन पहुंच रही है"
मन मसोस कर मैंने अपने आप को दिलासा दी "अच्छा हुआ, समय से पुणे आ गया"