Wednesday, November 5, 2008

मेवों की मनुहार

This is a post dedicated to my wife. As most of you know by now, I am from a highly conservative & a traditional family. Living in a joint family, Me & Wife don't even get a chance to talk to each other in presence of other family members. This Deepawali, while trying to burst an Agarbatti-timed-Sootli Bomb in our living room, I annoyed my wife inadvertently. She wasn't infuriated on my attempt at bursting the Bomb right in the Living Room... rather she got upset as the Bomb turned out to be 'Phussi-Bomb'...this yet again reinforced her 7 yr-old opinion about me… “तुमसे कुछ नहीं हो सकता”… she has quite frequently used this statement - at times directly, at times under the garb of some other relatively polite or wild words. As already told, we cannot look into each others eyes while in home, taking the advantage of Deepawali I tried using the Fruits & Dry-Fruits 'presented' (under coercion) to me by some Shri Preetam Lal Soni, as metaphors. Embarrassed to even tell her, I am posting it here

मेवों की मनुहार

ज़रा सी बात थी , दिवाली की रात थी
मन थोड़ा घबराया... फिर एक विचार आया
सबकी नज़रों से बचाते हुए
कुछ संभलते हुए, कुछ सकुचाते हुए
छील कर सूतली-बम की बत्ती
साथ बाँध दी अगरबत्ती
... लगाई अगरबत्ती में आग और
लिविंग-रूम में सोफे के पीछे रख
गया किचन में भाग।
हर बार की तरह,
किस्मत ने दिया दगा
सूतली-बम से भी गया ठगा!
... तुमसे नज़रें चुरा इधर-उधर भागा
मौका देख तुमने भी दागा
"तुमसे कुछ नहीं हो सकता"
उफ़! ये दाग मैं उम्र भर नहीं धो सकता!

तबसे हाल है बेहद बुरा, क्या बताऊँ ?
मायूस हूँ... तुमसे नज़रें कैसे मिलाऊं
बस 'प्रीतम लाल ' के तोहफे मेरे साथ हैं
दीपावली के सारे मेवे उदास हैं
सूख-सूख के अंगूर किशमिश हो गया
खजूर पिचक के छुआरा हुआ जा रहा
अखरोट को ख़ुद में दिखती है खोट
आलूबुखारे को भी बुखार आ रहा
अपने आंसुओँ से ही काजू नमकीन हो गया
पिस्ता ग़म में दिनों-दिन पिसता जा रहा
अंजीर ने पेट में मार लिया खंजर
बादाम का भी लगभग दम निकला जा रहा
इक बार बस नज़र भर के देख लो
सब दूध में कूद जायेंगे
... ग़र तुम मिल्क-शेक लो।
मुझसे भी ज़्यादा शायद तुमसे प्यार करते हैं
देखो, ये सारे किस तरह मनुहार करते हैं

मान जाओ, आख़िर बेचारे कब तक मनाएंगे
सूतली-बम फुस्सी निकल गया तो क्या हुआ
चलो अपन साँप-की-गोली जलाएंगे।

7 comments:

Parul said...

awesome....best so far.....too good

Saurabh said...

tumse kuch to ho sakta hai...loli lol

Aby_The_One said...

lol...I agree with Dr.Saurabh...Funny.."kuch to ho gaya hai" ;)

well but trust me those words especially when its you own wife, is like sharp object that tend to gouge out one's heart.
I would like to sympathize for the same...and wondering if all married male have the same story to tell.. ;)

Hail to my Bachelorhood!!!

swapnil said...

लालाजी आपकी बात मैं दम है , हम सब भी कही किसी से कम है !!
घर मैं आग लगाते हो , और बीवी रूठ जाती है तो उसको ढंग से नहीं मानते हो , और उसपर अपना ताव दिखाते हो!!
मेरे दोस्त मेरे भाई , तुमने यह अकल कहां से पाई. यह बात हमे समझ मैं नहीं आई!!

kolkata calling said...

Itne sare Meve aur sab apne apne tareeke se Udaas. Marvellous!

Kavi ne kitne tareekon ki udasiyan dekhi hain pyar mein, maloom padta hai.

Aur sahab phir bhi haar nahin maante, ek pataka phuss hone par doosra kaam mein laate hain.

Hats off to your kavita and philosophy of life.

The Backyard Baker said...

damn neat !!!
The best so far !!!!
Arey apni patni ko parwaiye......and let her not say'that' again !!!!

seema said...

मान जाओ, आख़िर बेचारे कब तक मनाएंगे
सूतली-बम फुस्सी निकल गया तो क्या हुआ
चलो अपन साँप-की-गोली जलाएंगे। ----ha ha
this was too gud....!!!me was rolling in laughter....aap yese hi rahe khushaal...u have nice hang on wrds ...lubbed it...