परिस्थितियों के मुताबिक हम अक्सर विभिन्न चीजों की व्याख्या अलग अलग तरह से करते रहते हैं. ... एक सन्डे की दोपहर, नए नए ख़रीदे बीन-बैग पर कुछ आढा-टेढा सा लेटने की कोशिश करता हुआ मैं सोच रहा था 'साला, इस से बड़ा सुख कोई नहीं'... एक दोपहर में खाना खा कर, ऑफिस-घर के काम-काज से बेपरवाह, बेतरतीब से पड़े हुए एक पसंदीदा मैगजीन पढ़ना... वाकई में बड़ा सुख है.... पर सुख वास्तव में आपेक्षिक (relative) है ... किसी विशेष समय पर आपको कोई बहुत बडी चीज़ भी वो सुख नही दे पाती जो एक बहुत मामूली सी चीज़ दे देती है. फिर सुख प्रदान करने वाली चीज़ों की लागत का ध्यान रखना भी ज़रूरी है.... अब सुख की खातिर हर आम आदमी तो अपनी पत्नी या प्रेमिका को एक एयरबस A-३२० तो गिफ्ट नहीं कर सकता ना?... बहुत सारे मुझ जैसे आम आदमी तो पत्नी की मांग पर हीरों-का-हार या विदेशों में छुट्टियां देने में भी अक्सर सक्षम नहीं हो पाते हैं.
इस तरह सुख की परिभाषा में दोनों मापदंडों का अनुपात आवश्यक है - सुखानुभूति और उस पर आने वाली लागत. संभवतः कुछ भद्रपुरुष इस बात पर भी सहमत होंगे कि आपकी सुखानुभूति और उसे प्राप्त करने का माध्यम दूसरों के आराम और दिनचर्या में बाधक नहीं होना चाहिए... वरना कुछ स्वघोषित गायक और संगीतकार रियाज़ के नाम पर दूसरों का जीना हराम कर देंगे. वहीँ कुछ मनचले युवा रोज़ सड़क पर कई लोगों को कुचलेंगे... अपना वाहन-चालन का रस लेते हुए. आज भी कई लोग इस में ही बहुत सुख ले लेते हैं कि उन्होंने फलां किले के खंडहरों पर कहीं कोने में चॉक से 'दिल' का निशान बना कर गोद दिया है "Moolchand luvs Sunita"... बहुत से मजनू स्कूलों- कॉलेजों के टॉयलेट में "रूपा तू मेरी है - श्रीकांत" या फिर "प्रेमलता-मेरे दिल की रानी, I love you Premlata" जैसी घोषणाएं करके अजीब सुख महसूस करते हैं... ये हालाँकि समझ से अब तक परे है की रूपा 'बोयज़ टॉयलेट' आकर श्रीकांत की प्रेम-विज्ञप्ति कैसे पढ़ पायेगी या फिर प्रेमलता किसके दिल की रानी है.... और अगर है भी तो ये सन्देश प्रेमलता तक पहुंचेगा कैसे?
खैर, सुख की ना ख़त्म होने वाली मेरी अपनी खोज में मैंने कई विकल्प तलाशे. एक या दूसरे मापदंड पर एक के बाद एक रद्द होते विकल्पों के बीच मैं सोचने पर मजबूर हो गया की ऐसी क्या चीज़ है जो मुझे ( और अन्य सभी को भी ) उसकी लागत के अनुपात में अधिकतम सुख की अनुभूति देती है... बहुत दिमाग दौड़ाया... काफी देर सिर खुजाता रहा पर किसी चीज़ पर बात जमती नहीं दिख रही थी... आखिर सिर खुजाते-खुजाते अहसास हुआ की शायद 'यही' वो चीज़ है जिसके लिए मैं दर-दर भटक रहा था... सहसा अहसास हुआ की मेरी शर्तों को कोई सुख अगर सबसे अधिक योग्यता से पूरा करता है तो शायद 'यही' वो 'सुख' है..
..... अ...आ...sss..ह..हा..हा... ज़रा सोचिये क्या इस से बड़ा कोई सुख है जब आप की पीठ में जोर से खुजली हो रही है और आप किसी तरह अपने हाथ को लगभग तोड़-मरोड़ के अपनी पीठ के उस क्षेत्र तक पंहुचा लेते हैं जो आपने आज तक सीधा अपनी आँखों से देखा तक नहीं है.. फिर धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ते हुए आप अपनी उँगलियों को एक ताल में चलाते हैं और आँखें बंद कर ये सोचना भी नहीं चाहते की ये उंगलियाँ कब रुकेंगी... सचमुच इस से बड़ा सुख शायद और कोई नहीं... या फिर, पसीने से उत्पन्न खुजली जो आपके अधो-वस्त्रों के किनारों पर मचल रही हो... पर अपनी महिला सह-कर्मी या सह-पाठी की नज़रों के सामने होने से आप अपने हाथ वहाँ तक बढा भी नहीं पा रहे हैं... फिर, भगवान् आखिर आप की सुन लेता है... और अचानक ही वो अपने कंप्युटर स्क्रीन पर ध्यान गडा देती है ... फिर, मौके का फायदा उठाते हुए, भगवान् का शुक्रिया अदा करते हुए... आप उन दो-चार मिनटों में ही जैसे एक सदी से उठ रही खुजली को मिटा लेना चाहते हैं... सोचिये और बताइए.. इस लागत में इस से ज्यादा सुख की अनुभूति आपको कहीं मिल सकती है... ये बात दीगर है की 'खुजली' की अगली अवस्थाएँ, दाद और खाज, खुजाने की पूरी प्रक्रिया में से 'सुख' का अंश लगभग गायब कर देती... इसीलिए, मेरी निजी गुजारिश मान कर, जब मौका मिले, खूब खुजाएँ...इस विषय पर अब तक के सबसे प्रचलित विज्ञापन को थोड़ा मरोड़ते हुए - खुजली करने वाले, बी-टेक्स लगाने से पहले, जी भर खुजा ले...
7 comments:
I scratched my back while reading this...! ;)
हा हा हा... सापेक्षिक खुशी का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है भला कि -
बीटेक्स लगाने से पहले जी भर के खुजा ले!
नेताओं के लिए -
ईमानदार बनने से पहले देश भर को जीभर के लूट ले!
:):-)
ही ही ही ,:) :-) ,
मैंने अपने हाथ खुजली करने उठाये ही थे फिर सोचा अरे बाबा मुझे खुजली तोह हो बी नहीं रही......:-)gosh it was that contigious...!!!thanks sameer for making my day full of secret sneaky laughter...(nd i will definetely pretend i am TOTALLY focused in my compu a lot more time hehe)
haha ahah aur jo toilet mein likhte hai woh prelata aur unki behno ke liye thodi na likhte hai woh toh jo dusere hareef munde hote hai unke liye hota hai...:-)..mein yeh baat bahot log ko puch chuki hun...isliye bata rahi hun...जैसे शेर जंगल में अपना एरिया अपने सुसु से मार्क करता है बिलकुल उसी तरह....:)
likhte raho....!!!!
woh scale sey peeth khujana yaad aa gaya..aur khujanshree ka zamana dimag per chhaa gaya .......wah wahh
hahaha..good one!
keep scratching..err..writing!
well said....heavnly feeling..atleast us pal k liye...liked tht BE-TAX song..hehhe
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