Tuesday, May 15, 2012

बात ही कुछ और है...

इनकी प्रसिद्धि बेवजह हर ओर है
पूरे ऑफ़िस में आजकल इनका ही ज़ोर है 
दरवाज़े से ही आगमन की सूचना देते हैं 
बरबस सबका ध्यान खींच लेते हैं 
हम  नाक-मुँह सिकोडें उसके पहले ह़ी 
सब के नज़दीक से निकल जाते हैं
नज़र भले ही ना आये, पर 
एक 'छाप' छोड़ जाते हैं 
दिन-भर झांकते रहते हैं, और  
दो-चार बार बाहर भी आते हैं -  
उपस्तिथि फिर दर्ज़ करवा जाते हैं 
साल भर खूब तड़पाते हैं, पर
सर्दियों में थोड़े 'ठन्डे' पड़ जाते हैं
जिनको सर्दी-झुकाम  है, शायद 
उन पर अल्लाह का करम है 
अन्यथा हर-इक  की नाक-में-दम है 

पर मिश्रा जी को इनकी कहां पड़ी है 
जहां-तहां सुराख हैं और 
एलास्टिक भी अब सड़ी है 
बेचारे अब बस टखनों से लिपटे रहते हैं 
रगड़ते-घिसटते हुए कितनी ज़िल्लत सहते हैं 
पूरे ऑफिस में फिर भी इनका ही दौर है 
मिश्राजी के मोजों की बात ही कुछ और है 

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