जब मैं चुनौतियों की तरफ दौड़ा
सरपट, तुमने मेरा साथ दिया.
जब मेरे प्रयास नई बुलंदियों की तरफ थे
सीधी ढलानों पर तुमने पकड़ मज़बूत की.
जब कभी उड़ा और मेरे पाँव ज़मी पर न थे
तुम ही धरातल पर मुझे बांधे रहे.
परेशां हो, जब मेरे पैर उखड़ने को थे
तुमने टखनों से मुझे थाम लिए.
जब कभी मैं बहका, पैर फिसलने को थे
तुमने अहसास कराया-कुछ बंधन लाज़िमी हैं.
कॉलेज-ऑफिस की रोज़ देरी पर मैंने तुमको अक्सर कोसा
... तुम थे की फिर भी पैरों में पड़े रहे.
मंदिर-मस्ज़िद-गुरूद्वारे की दहलीज पर
तुमने मुझे कुछ देर रुकने का बहाना दिया.
तुम्हें देख मैं ज़िन्दगी के सुराखों से निकल गया
... तुम कुछ यूँ मेरी प्रेरणा बने रहे.
शुक्रिया मेरे जूतों के फीतों, तुम्हारा शुक्रिया...
.... मैं भी कहाँ 'पम्प-शूज़' के फेर में पड़ा था...
2 comments:
जूतों के फीतों....least expected they'll get all the credit..... hahahha
good one!!
Wah Sameer....!
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