Tuesday, July 19, 2011

बूढ़ा बरगद

एक बूढ़ा बरगद मुझे अक्सर आवाज़ देता है
कुछ अनमना सा, कुछ उदास, जटायें लटकाए 
बेतरतीब सी शाखों पर चंद पत्ते 
आधे सूखे हुए आधे मुरझाये
एक तरफ से निकलती पगडंडियों को 
देखता टकटकी लगाये
कोई राही काश मुझ तक भी आये

बहुत अरसा कहाँ हुआ जब
हर सरगर्मी का हिस्सा था 
जिसके तले रोज़ इक नया किस्सा था
खेल के मैदान के दूसरे छोर पर अब 
पंचायत का नया भवन बन गया है
ग्यारह कमरों का प्राइमरी स्कूल भी
पास ही तन गया है. 
गाँव में गतिविधियाँ ही चंद हो गयी हैं,
शिक्षा अब दरवाज़ों में बंद हो गयी है

शाखें भी औकात से ज़्यादा बढ़ गयी हैं,
नीम-शीशम-कनेर से बेवजह उलझ गयी हैं
लच्छु नीचे चबूतरे पर खेला, बढ़ा हुआ
गोद में झूला है, आज कुल्हाड़ी लिए खड़ा है
श्यामू का कहना है -
"कोटर में हींग भरवा दो, फिर ४० दिन बाद
नीलाम करवा दो" . पूनम कहती है
"ये बारह-मास झड़ता है, दिन भर अब
बस कचरा ही करता है "
सूरज और गोपाल जो दिन-रात
बरगद के नीचे लोटते थे, 
उनको वही चाँदनी अब खटकती है
बरगद के नीचे अब नींद कहाँ लगती है.
मीरा सिर्फ वट-अमावस पर याद करती है
इक कच्चे धागे की शपथ दे जाती है
और श्यामू की साल भर की उम्र ले जाती है.
पंडितजी कभी कभार इधर भटक जाते हैं
वचनों-प्रवचनों से शर्मिंदा कर जाते हैं.
पटवारी कहता है-
 इधर से पक्का रास्ता आ रहा है और अब
ये बरगद गाँव के विकास में आड़े आ रहा है.
काटेंगे फिर खोद कर जड़ें भी निकाल देंगे
जटायें कुछ काम नहीं आतीं और 
लकड़ियों के उपयोग में संस्कार आड़े आते हैं

अब इंतज़ार बहुत हुआ.
तना भी गलने लगा है, छाल बिखरने लगी हैं,
जटायें भी शिखर से उतर अब,
धरा चूमने मचलने लगी हैं.
अब और इंतज़ार क्यों 
और पैरवी किस बात की?
ये मंज़र अब और ना देख पाऊंगा
मुझे अब बस जल्द कटवा दो, यहाँ से हटवा दो 
आखिर कब तक बर्दाश्त कर पाऊंगा
अगली बारिश में वरना 
ख़ुद-ब-ख़ुद उखड़ जाऊंगा

4 comments:

Saurabh said...

not the usual kind but every bit ur Kind.. and yeah well worth the wait of so long.. यह सही है कि..

बरगद बूढा होने तक बचा रह गया
कुछ िरशते मजबूत कर गया
कुछ िरशतों की दरारें भर गया

seema said...

:) काश अगर बरगद के मुंह में जुबान होती तोह कहता ..
बुढ़ा होगा तेरा........:)
jokes apart--
दिल को झकझोर के रख दिया आपने ...
.
पेड़ पौदो का क्या महत्व था हमारे समाज में !!
और आज विकास के आड़े आ रहा ....

शिक्षा अब दरवाजों में बंद हो गयी है....
और सब बच्चे थे जो कभी अब सयाने और बड़े हो गए है...उनका चित्रण खूब .....

जापान के हिरोशिमा मुसयूम में उन् लोगो ने जले हुवे पेड़ भी संभाल के रखे है ..!!:)
जैसे तुम्हारा बरगद किसी राहगीर का टक टकी बांध इंतज़ार कर रहा है
वैसे ही..भारत अपनी भूली सभ्यता का --जो कभी पेड़ पौदो में माँ और बाप का साया ....!!!
intzaar ka phal meetha hota hai ...lekin yeh ankho.n mein ek naya joshh..saath gaal mere namkeen kar gaya...!!salaam..:)

Praveen said...

Jiyo dost ... you have touched almost all aspects of a thing of past which in today's world has little value and almost no utility.

Afsos ab hum bhee boodhe hone lage hein ....

shobby said...

lovely! :)